गाँधी
तुम्हारे चरखे, तुम्हारी तकली पर चढ़कर
स्वतंत्रता घर-घर की
ज्योति-शक्ति हो गई,
‘सत्याग्रह’ को विश्व-क्षितिज मिला,
राजनीति में कर्म-बोध को
उच्च-उज्ज्वल चरित्र मिला।
गाँधी,
तुम कुछ और गाँधी,
गाँधीमय लगते,
यदि देश विभाजित नहीं होता,
यदि सुभाष बोस तथाकथित रूप से
लापता नहीं होते,
यदि भगत सिंह की फाँसी का
तुम्हारे नेतृत्व में
सतेज विरोध होता,
यदि वीर सावरकर
अपने घर में ही
परित्यक्त नहीं होते।
-सतीश
30 May, 2021.
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