फूल
रग-रग में जीवन-रंग की परत-परत को पहने,
इठलाती पंखुड़ियों को साथ समेटे,
दूर-दूर तक सुवास फैला देने को आकुल,
मन-विभोर मकरंद लिए,
अपरिमित भावों में डूब,
वलय-लय में ढल कर
शोख़ अदाओं को धारे,
फूल खिलता जाता है;
जीवन-धूप को पी-पी कर
खुलता-खिलखिलाता जाता है!
-सतीश
6th June, 2021
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