मैं चाँद हो न सका !
कोशिशें मैनें की -
अपनी आकृति को गोल-मटोल कर लिया,
फिर, सफेद पुताई कर ली,
शुभ्र, श्वेत वसन भी ओढ़ लिया,
व्यवहारगत, मानसिक व्यसन के साथ।
बात सिर्फ़ इतनी सी थी कि
रात के शरीर पर बैठकर जल नहीं सका,
उसके अस्तित्व के सामने उद्दीप्त हो नहीं सका,
दूसरों से मिली रौशनी को भी
औरों के लिए बाँट नहीं सका;
यों, मैं चाँद हो न सका।
⁃ सतीश
Sept 25, 2021.
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