सृष्टि-प्रवृति
बहुत हुई रोदन की बातें,
बहुत हुई आफ़त की घातें,
तूफ़ान जीवन में खड़ा है,
दुर्योगों की मनमानी है।
पर, धरती से आकाश तक
प्रकृति के सातों रंग जगें,
हमने भी यह ठानी है।
सभी नकारों को याद रहे,
हार-हार कर जीतता है मनुष्य
प्रकृति की यही विस्मय-भरी
अजर-अजेय कहानी है;
सृष्टि का यही सत्य-विवेक,
है सुंदर सत्व, शुभ शिव, अक्षय आनंद!
- सतीश
28 April, 2021.
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