ऐसा आना-जाना
पूजा-स्थली में
आने-जाने की हमारी
भाव-ढंग-शैली
निराली होती है।
हम अपने मन के भीतर भी आया-जाया करें,
कुछ इधर-उधर, कुछ इस-उस कोने में
थोड़ा-अधिक, सीधे-तिरछे
अवलोकन, आकलन किया करें!
भोर की विनम्र धूप,
चाँदनी के शीतल व्यवहारों से,
दोपहरी की तेज-तप्त भाव-किरणों,
संध्या की सलज्ज सिकुड़न से
अंतर-अंतरालों को भरा करें!
-सतीश
26 Dec, 2021
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