माँ सरस्वती।

तेरी वीणा की झंकारों से 

निनादित होते सृष्टि के 

सुंदर स्वप्न, सात्विक कला-विधान,

उनके विंदु-विंदु, तार-तार,

समग्र सार-प्रसार! 


तेरा पुनीत आसन बनकर 

कमल का सौभाग्य-सौंदर्य दमकता है,

तेरे चरणों की धूलि में

हंसों की बारी आती;

वे होते मान्य, सुशोभित, 

कुछ कहते, कुछ सुन-गुन लेते! 


तेरे पगों पर अर्पित हो

एक प्रार्थना माँगती है

कि जब भी तूलिका उठे,

जाने-अनजाने उसकी तूल में 

तर्क, विचार, भाव 

कभी, कहीं बिके-गिरे नहीं;

जीवन के उच्च मान-मूल्य 

न भ्रमित हों, न गर्हित हों। 


भारत-भूमि, देश-धर्म,

देश-मान, देश-कर्म,

देश-हेतु ही जग-कर्त्तव्य! 

इन भावों से प्राणित, अनुप्राणित होकर 

सदा तेरे चरणों पर अर्पित हों, 

हर अक्षर, हर शब्द-पंक्ति-कर्म,

आस-प्रयाससायास या अनायास



-सतीश 

वसंत-पंचमी, 

Feb 5, 2022. 


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