आँखों से आँखें मिलीं !

आँखों से आँखें मिलीं,

हम सारी बातें भूल गये,

भावों के भँवर उठे-

बनी उनके छोटे-बड़े वृत्तों की घूर्णियाँ,

उनकी आकुल टकराहट, फिर हुआ

एक-दूसरे में उनका हर्षित विलय! 


पुतली की नोकों पर चढ़े हुए

भावों की सुंदर आहट में 

यामों-आयामों को हम बिसर गये;

सोच-विचार, चिंतन-मनन,

जीवन के सारे उच्च मान-दर्शन,

किस ओर गये, किस ओर मुड़े?

किस ओर चले, किस ओर उड़े?


आँखों से आँखें मिलीं,

हम सारी बातें भूल गये! 


नयनों की गूढ़-तीक्ष्ण कलाओं में

जीवन के सब रंग जगे,

अनगिनत स्वप्नों के मन बने,

उभरे हल्के उघड़े क्षण, छोटे-सहज संवाद,

इधर-उधर की यादों के टुकड़े;

ये कुछ बहते, कुछ रूक कर कहते!


आँखों से आँखें मिलीं,

हम सारी बातें भूल गये! 


-सतीश 

Feb 19, 2022. 









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