लाल-लाल पंखुड़ियाँ!
लाल-लाल पंखुड़ियाँ,
सुंदर, सुरभित पीत पराग!
जीवन में चारों ओर!
इनके सौंदर्य-वसंत की आभा में
अवसादों के तार टूटे,
फिर, बातों से कुछ बातें हुईं;
इनके मन में बैठ-पैठ कर,
मुझको अपनी व्यथा व्यर्थ लगी!
रक्त की भाषा-संहिता जाग उठी,
भावों को सुंदर विस्तार मिला,
सौन्दर्य-समाधि में लीन-विलीन
साँसों ने सुवासित गति पायी!
जीवन के मूल, अमूल्य मन-प्राण!
लाल-लाल पंखुड़ियाँ,
सुंदर, सुरभित पीत पराग!
जीवन में चारों ओर!
-सतीश
Feb 5, 2022.
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