सच्ची बचपना, सच्चा स्व

बादलों की आदतें, वर्षा की कहावतें 

एक दूसरे से मिल जायें,

यही है प्रकृति की बचपना 

और बचपना की प्रकृति! 


सागर के ऊपर इठला लेना,

पर्वत से गलबाहियाँ करना,

मन-मस्त होकर फिर उससे टकरा जाना, 

यही है बचपना! 


माना कि वर्षा की बूँदों से तुम भीग गये! 

संभवत:, यह कच्ची, आधी- अधूरी अनुभूति हो। 

जब मन की खोहों में बसी

कुछ परिचित, कुछ अपरिचित,

कुछ स्पष्ट, कुछ अटपटी,

कुछ सपाट, कुछ उलझी,

कुछ सहज, कुछ असहज

स्मृतियों से अनायास तुम तरल हुए, 

तो सच मानो भीगने की 

है वही पूरी समग्रता, पूरी व्याप्ति! 

और जीवन की सच्ची बचपना ! 


सहज रूपों में 

पूछ लेता है ऐसा बालपन कि


बादल के शरीर में जल-बूँदों का वर्चस्व क्या है? 

ठोस का छहर कर पसर जाने के भीतर, 

तुम बोलो, सच्चा स्व क्या है? 



-सतीश 

12 Jul, 2022

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