आलोचना
आलोचना बनती है लोच से, लोचन से-
सकारात्मक लोच से,
सकारात्मक, सकर्मक लोचन से।
सरकार हो, या व्यक्ति,
आस्था हो या व्यवस्था,
या शासन-प्रशासन ही,
या फिर अपने भीतर का द्वन्द्व,
संघर्ष, पक्ष-विपक्ष,
या कोई बाहरी प्रतिद्वंद्वी -
इनकी “आलोचना”
इसी भाव से यदि आये,
तो वह सुलोचना हो जाती है,
श्रेष्ठ, श्रेष्ठता, महती हो जाती है!
⁃ सतीश
14 July, 2022.
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