एक सीधी-साधी साँझ


चाय की हल्की चुस्की,

और नींद की दो अनजानी घूँट! 


इस बीच, 

हल्की-सी हवा

धीरे-से छू कर चली गई! 


उधर, अभी-अभी आयी 

सरल, सुंदर, स्पष्ट चाँदनी 

अँधेरे को कुछ कहती रही,

चुपचाप, लगभग अशब्द! 


बहुत सारे अर्थों के बिना,

बहुतेरे रव से अलग,

एक सीधी-साधी साँझ! 



-सतीश 

Oct 7, 2022


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