ऐसा दीया
एक सुयज्ञ की सु-अग्नि के
कर्म-तप से जीवन उजले,
अग-जग का सारा तप जले,
चेतन-अचेतन सब सुंदर हों,
सम्पूर्ण प्रकृति-कृति समवेत रहे,
सब चित्त , सब चित्र जगें!
सृजन-धर्म-कर्म के मान-प्राण शिव!
दीप-जीवन में ऐसा शक्ति-सूत्र भर दो,
उसकी लौ में ऐसा तेज-ताप भर दो,
उसकी जलन-तपन में ऐसा तप भर दो
कि सब सुबह धवल हों,
सब साँझ अमल हों।
शरद-हेमंत-शीत-वसंत,
ग्रीष्म-वर्षा - सब सहास हों,
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण
सब युक्त-संयुक्त रहें,
सब आफत-आतप-आपदा हटे,
भारत-भू पर अमृत बरसे,
सारा जग हो उत्फुल्ल, उठे,
देश-प्रदेश-विदेश उजले !
ऐसा दीया अपने मन में रख दो,
ऐसा दीया जन-मन में धर दो,
ऐसा दीया जन-गण में भर दो!
⁃ सतीश
April 5, 2020.
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