कार्तिक की धूप


कार्तिक की

हल्की-हल्की, मद्धिम-मद्धिम, पतली-पतली धूप

तन को ताप से भरती,

मन को उष्मा-ऊर्जा देती,

उसे थपथपाती-जगाती, उमेठती-उमगाती,

आलस्य-आवरण को उत्फुल्लता से उघाड़ती!


सूरज की नरम-नरम किरणें

आसमान के ओर-छोर को 

उम्मीदों से बाँधतीं,

फूलों-पत्तियों-लतिकाओं से अठखेलियाँ करतीं,

उन्हें जीवन-तत्व देतीं,

उनके जीवन में अपने आप को घुलातीं-मिलातीं!

ठिठुरते-सकुचाते पेड़-पौधे-वृक्षों को

जीवन-सान्त्वनाएँ और संभावनाएँ देतीं! 


दिन की हवा की ठंडक को

धीरे-धीरे, थोड़ी-थोड़ी गर्मी देती;

मौसम के सर्द व्यवहारों को 

शनै: शनै: शालीनता सिखाती -

कार्तिक की धूप !

अपने ही तौर-तरीक़े से क्षुब्ध हो

सिहरते-काँपते, शीत होते वातावरण को

सहज ढ़ाढ़स देती -

कार्तिक की धूप ! 


सतीश 

Nov 28, 2020. 





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