ऐ बरखा रानी!

तुम भीग-भीग कर बरस गयी,

या, बरस-बरस कर भीग गयी?


ऐ बरखा रानी! 


तुम बूँद-बूँद बन छहर गयी,

या, छहर-छहर कर बूँद-बूँद हुई? 


ऐ बरखा रानी!


तुम मेघों में बस कर नेह-गेह बनी,

या नेहों से भर कर छलक गयी? 


ऐ बरखा रानी! 


मेड़ों की बेचैन पुकारों पर

आकुल होकर तुम उतर गयी?

किन मधु-सिक्त भावों से सिहर-सिहर कर

तुम आज अवतरित हुई? 


ऐ बरखा रानी! 


आसमान से धरती तक 

कैसे-कैसे तुम छा गयी! 

अनंत मनों, मुकुटों, मुँडेरों पर

तुम निश्चल विराज रही! 


ऐ बरखा रानी ! 




-सतीश 

Dec 27, 2022. 



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