क्या कहूँ , क्या लिखूँ ?
जीवन में, अंतत:, एक क्षण ऐसा आता है
जब समय की साँसें सिहर जाती हैं,
जीभ हिलने से हिचकती है,
विराम पूर्ण हो जाता है!
बड़ी-छोटी उपलब्धियाँ, निराली प्राप्तियाँ,
भाग-दौड़, आपाधापी, समीकरण-गणित -
ये सबकुछ अचानक मौन हो जाते हैं!
रह जाते हैं आर-पार कुछ व्यवहार सुलगते हुए,
स्मृतियों के सिरहाने बातें टिकी होती हैं,
कुछ भावनाएँ लपक-लपक कर
एक ओर से दूसरे छोर तक कौंध जाती हैं!
कौंधती रहती हैं!
मन के आकाश में सरकते रहते हैं घने बादल,
गर्जन-तर्जन के साथ, भाव-नर्तन के साथ,
छटपटाती, कड़कती बिजलियों के साथ,
भीगते हुए, भीगाते हुए!
क्या कहूँ? क्या लिखूँ?
-सतीश
August 25, 2023
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