सावन की बातें बरस गईं!

सावन की बातें बरस गईं!

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 जाने कब से पड़ी हुईं,

मन के कोने में जड़ी हुईं

सावन की बातें बरस गईं!


भावों के कितने वर्म खुले,

कितने-कितने मर्म खिले,

आते-जातेसोते-जगते

 प्रेम-क्षेम के धर्म जगे,

 सावन की बातें बरस गईं


मन की भीगी भीगी अंग-उमंग

आसमान पर है इतरातीइठलाती!

फिर घन के तेवर सघन हुए,

सावन की बातें बरस गईं


-सतीश 

अगस्त 30, 2023. 

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