फूलों से शृंगार करूँ?
फूलों से शृंगार करूँ?
आतंक का मरघट बसा है,
बड़े युद्ध की वेला है;
तर्क-वितर्क की घूर्णियों में
लिखने वाले हैं बिक रहे;
जीवन निरीह घूर रहा,
मानवता है रो रही।
इधर, मैं प्रेम के बंध सजाऊँ?
प्यारी साँझ के लाल कपोल,
मन का अभिसार देखूँ?
पुतलियों के आर-पार
तितलियों के साथ उड़ूँ?
फूलों से शृंगार करूँ?
-सतीश
October 31, 2023.
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