दिल्ली और “पानी”!

दिल्ली और “पानी”! 


दिल्ली को “पानी” नहीं सुहाता!


वह पानी के बिना तड़पती रहती है,

उसके वातावरण का तापमान बढ़ जाता है;

पर, पानी को देख वह बेचैन हो जाती है,

अस्त-व्यस्त, त्रस्त-ग्रस्त हो जाती है,

वह अति विह्वल हो जाती है, डूब जाती है, 

अपने मन की वीभत्सता को सड़क पर परोस देती है,

सहजता के साथ, बिना किसी रोष के! 


कभी पानी की खोज में, कभी पानी से भीग कर 

वह पवित्र भावना से आमरण अनशन करने लगती है,

बड़े भोले भाव से 

“जंतर-मंतर” की मुद्रा-शिला पर अपनी रीढ़ को तानने का 

व्यायाम करने लगती है! 


मानता हूँ, दोष पानी का है, 

पानी के आने और नहीं आने का है,

पानी का पानी होने और नहीं होने का है, 

दिल्ली का नहीं! 

सदैव मानता हूँ! 


-सतीश 

29 जून, 2024. 



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