वो मन, वो तन

वो मन, वो तन 


वो मन से हरी-हरी,

वो तन से भरी-भरी,

भंगिमाओं में तीक्ष्ण-तप्त ! 


आँखों में मर्म की मोड़ लिए

पुलकित पुतली की प्रेम-छाँह में

मुस्कानों की कोमल डोरों पर

हर मन को बाँध रही हो 

हर साँस को साध रही हो! 


कानों की सुंदर पीली बाली 

हिलडुल कर, झूम-झमक कर

हल्के झन-झन से है भरती 

मन की गहरी, प्रसन्न प्याली ! 


धीरे-धीरे बहती धीर हवा 

भाव-भव के कोने-कोने को 

कोमल, शीतल, सरल करती,

तरुणाई के अंग-अंग को अरुणाई देती ! 


आसमान के पूर्वी, दायें सिरे से झाँकती 

चाँदनी है रागिनी सौंपती

धरती, दुर्ग, क़िला, टीला, उच्च शीर्ष को ! 

अलसाई घाटियों को समवेत उमेठती, 

हिचकती कन्दराओं की तंद्रा मिटाती ! 


- सतीश 



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