वर्ष भर, क्षण भर
वर्ष भर, क्षण भर
पूरे वर्ष को उलट-पुलट कर देख लूँ?
उसके रगों, रेशों को समझूँ लूँ?
उसकी आत्मा के स्वरों से गुजर जाऊँ ?
उससे होकर अनेकानेक वर्षों को थाम लूँ?
या
क्षण को पकड़ लूँ?
उसे सहेज लूँ, गढ़ लूँ?
उससे नया फलक बना लूँ?
नया पग कहीं धर दूँ?
कोई नई सीढ़ी चढ़ लूँ?
नई माटी खोज लूँ?
माटी की नई महक के साथ हो लूँ?
क्षण-भर, वर्ष भर!
⁃ सतीश
दिसम्बर 30, 2024
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