काशी ! काश!
काशी ! काश!
पिछले कुछ दिनों काशी में था।
बाबा विश्वनाथ के मंदिर गया;
अब भी मन में कचोट होती है।
हमलोग उस देश से हैं,
जहाँ अपने ईश्वर की आराधना भी हम नहीं कर सकते,
बाबा विश्वनाथ का मूल स्थान अब भी
न्यायालय की फ़ाइलों में क़ैद है;
इसे पीड़ा कहूँ या ग्लानि या आत्म-क्षति?
-सतीश
Dec 4, 2024.
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