कविता और जीवन
कविता और जीवन
कोशिश करता रहूँ कि
बातें नहीं, तर्क नहीं,
विचार नहीं, बिम्ब नहीं,
जीवन को जीवन दे दूँ
कविता को कला नहीं,
पूरा-पूरा जीवन दे दूँ, -
उसकी धूप, छाँह,
उसका चेतन, अवचेतन,
उसकी उज्ज्वलता, धूसरता,
सफलता, असफलता,
उसका उत्कर्ष, उसकी खाई,
उसका अँधेरापन, उसकी आत्म-ज्योति,
उसका मज्जन, उसका मार्जन,
उसका योग, उसका भोग !
क्या कविता जीवन से बड़ी हो सकती है ?
⁃ सतीश
अक्टूबर 3, 2024.
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