तुम
तुम
तुम साँझ सी चली गई,
तुम भोर सी साकार हुई!
घोर अमा में आस्था से उजलती
चाँदनी सी फहर गई,
सरल धूप सी तुम पसर गई!
हिचक, कसक, उद्वेग से परे
हवा सी तुम बह गई, -
मन के कोने-कोने में,
जीवन के रग-रग में -
कर्म-धर्म को साथ लिए,
भाव, मर्म, राग-विहाग लिए!
सतीश
मार्च 15, 2024.
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