पर, बेपर !
पर, बेपर !
अक्सर,
ज़ंजीरें मन में होती हैं, पैरों में नहीं!
कई बार, स्वप्नों के बिना पर बेपर हो जाते हैं,
कई बार, बेपर की उड़ानें भी बड़ी होती हैं,
आसमान को नई ऊँचाई, नया विस्तार देती हुई।
- सतीश
दिसम्बर 5, 2024.
पर, बेपर !
अक्सर,
ज़ंजीरें मन में होती हैं, पैरों में नहीं!
कई बार, स्वप्नों के बिना पर बेपर हो जाते हैं,
कई बार, बेपर की उड़ानें भी बड़ी होती हैं,
आसमान को नई ऊँचाई, नया विस्तार देती हुई।
दिसम्बर 5, 2024.
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