पैसा और कविता

पैसा और कविता 


जुटा रहता हूँ दिन भर

पैसे की कमाई में,

जोड़-तोड़ में, शोर-होड़ में,

इसलिए कि शाम में

एक कविता पढ़ सकूँ,

एक कविता सुन सकूँ, 

एक कविता गुन सकूँ,

एक कविता लिख सकूँ! 


सतीश 

जनवरी 18, 2024. 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बहुत बार

ऐ हिम, तुम मानव हो क्या?

क्या करूँ ईश्वर ?