दो-गले
“दो-गले”!
कभी-कभी सोचता हूँ
जिसने “दो-गला” शब्द रचा होगा,
वह शब्दकार आज कितना
निरीह, निस्सहाय, निरुपाय महसूस करता होगा।
आज हम दो गलों से नहीं,
असंख्य गलों से बोलते हैं,
अनंत बिकी निष्ठाओं से बोलते हैं!
⁃ सतीश
मई 14, 2024
“दो-गले”!
कभी-कभी सोचता हूँ
जिसने “दो-गला” शब्द रचा होगा,
वह शब्दकार आज कितना
निरीह, निस्सहाय, निरुपाय महसूस करता होगा।
आज हम दो गलों से नहीं,
असंख्य गलों से बोलते हैं,
अनंत बिकी निष्ठाओं से बोलते हैं!
⁃ सतीश
मई 14, 2024
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