धागे - तरीक़े, बे-तरीक़े !

धागे - तरीक़े, बे-तरीक़े ! 


कई बार 

जीवन के धागे उलझ जाते हैं,

प्रेम में भी! 

अनबुझ हो जाते हैं, उनके फेरे, 

यहाँ-वहाँ लेटे रहते हैं, तिरछे-आड़े! 

वे तरीक़ों से नहीं, बेतरतीबी से बँधे होते हैं,

उनके रस्म-रिवाज अपने ही स्वत्व में खोये रहते हैं, 

उनकी भंगिमाओं की आत्म-कथा चुप रहती है, 

अपनी ही यादों में सुंदर आलस्य से पड़ी होती है! 

पर, वे होते हैं प्रेम ही,

होते हैं जीवन के सुंदर नेम ही! 


  • सतीश 

अगस्त 21/22, 2025 

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