राष्ट्रीय चेतना
हमारी राष्ट्रीय चेतना को
सिखाया-बुझाया गया कि
कुछ सत्यों, वास्तविकताओं को नहीं देखना,
उन्हें नहीं बताना,
उन पर चर्चा नहीं करना,
उनके बोध-मर्म को समूल नष्ट करना,
‘प्रगति’ का आधुनिक ‘शील’ है,
‘मानवता’ की अगली वृहत् कथा है,
‘अन्तर्राष्ट्रीय’ होने की प्रवृत्ति-मनोवृत्ति,
उसकी अन्तरात्मा के तथाकथित
स्वस्थ, विकसित लक्षण हैं,
‘आधुनिकता’ का अमिय पान है!
हमारी चेतना को मनाही है,
उन सत्यों के मन को टटोलने की;
उनकी संवेदनाओं,
उनके विन्यासों, उनके स्पंदनों,
उनकी अभिव्यक्तियों को
पढ़ने-परखने की।
तो, ऐसी चेतना से सचेत रहना,
उसे खंगालते, माँजते रहना,
उसे सुलझाते रहना,
उसका रचनात्मक, सृजनात्मक अवलोकन करना
हमारा राष्ट्रीय कर्त्तव्य है,
हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है,
उच्चतम धर्म है,
श्रेष्ठतम कला-कर्म-दायित्व भी!
-सतीश
5 Dec, 2021.
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