निराशा की कला

 

कला, कविता-कहानी, दर्शन में

निराशा का अतिशय प्रक्षेपण,

दुराशा की दुकानदारी, 

कला-रूपों से उनका घालमेल 

सामाजिक-मानसिक अतिशयता नहीं? 

अपराध नहीं?  


कला में 

विसंगति, विरोधाभास के अनुपात

जीवन में उनकी उपस्थिति से

अधिक क्यों हों? 



सकारात्मकता को परखना,

 बटोरना, जगाना,

जीवन-निर्माण की गति, विधा को 

मुखर  करना, प्रेरित करना, 

जीवन में सुख के पलों-पक्षों को रखना, 

उन्हें खोजना,

उनसे संवाद करना

असंगति है? अकला-बोध है? 




-सतीश 

Dec 30, 2021


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बहुत बार

ऐ हिम, तुम मानव हो क्या?

क्या करूँ ईश्वर ?