पत्थर
जिस पत्थर पर हमने माथा टेका,
वह पत्थर पत्थर ही निकला!
जिन भाव-विचार-तर्कों को लेकर
हमने ऊँचे-ऊँचे शोर मचाये,
अधिकतर, वे भ्रामक, निरर्थक निकले;
जिन आसों पर हमने अपनी साँसें टाँगी,
वे आसें उड़ना, सँभलना भूल गईं।
जिस दर्पण में हमने अपनी सूरत देखी,
वह दर्पण बेचारा, टूटा निकला;
जिस छाती में हमने अपनी धड़कन रखी,
वह छाती निज चेतना भूल गई!
सतीश
Dec 30, 2021.
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