कर्म की पहचान

कर्म को नहीं पहचानना,

धर्म की अवहेलना है! 

कर्म कठिन हो सकते हैं,

कठोर भी;

सन्दर्भ की आवश्यकता 

उसके होने का सबसे बड़ा अर्थ है,

सबसे बड़ी सार्थकता;

हमारे निर्णय कर्म-यज्ञ की

पुनीत समिधा होते हैं! 

निर्णय की मति-गति, विधा

यज्ञ-ज्वाला की

श्रेष्ठ, सकारात्मक शक्ति है।


संशयों, प्रशंसाओं या आलोचनाओं का

अतिशय आग्रह कर्म-चेतना को 

व्यथित, पीड़ित, ग्रसित कर सकता है।


कविता की आत्मा बोलती है

कि कर्म-सत्व सदा बने रहें,

व्यक्ति से देश तक, 

देश से विश्व तक;

वे उज्ज्वल और श्रेयस्कर रहें! 


सतीश 

           Jan 8, 2021. 










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