श्रीकृष्ण
मोहन,
तुमने जब राधा को
सस्नेह कहा - “आ राधा”,
राधा “आराधना” , “आराध्या” हो गई! -
तुम्हारे प्रेम-उपसर्ग को पाकर,
तुम्हारी प्रेम-संधि में समाहित होकर,
तुम्हारे प्रेम-समास में सम्मिलित होकर!
मधुसूदन,
तुमने युधिष्ठिर को “सत्य” बनाया,
तुमने अर्जुन को “कर्म” बनाया;
और, यों,
तुमने “कर्म” को “सत्य” का अनुज बनाया
और “सत्य” को “कर्म” के प्रति उत्तरदायी बनाया!
श्रीकृष्ण,
तुमने कालियदह में व्याल-मर्दन के लिए बाँसुरी बजायी,
तुमने कालियदह को कर्म दिया,
तुमने वृंदावन में गोपियों के लिए बाँसुरी बजायी,
तुमने वृंदावन को प्रेम दिया,
यों, तुमने कर्म से प्रेम की यात्रा पूरी की!
सुदर्शन,
अपने “चक्र” की आभा में,
अपने कर्म के दर्शन में दमक कर,
तुम दर्शनीय-सुदर्शनीय हो गये!
तुम आराध्य-अर्घ्य हो गये!
सतीश
August 11, 2020
(जन्माष्टमी)
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