मोरबी का पुल
हमारी व्यवस्था में
पुल का टूटना
एक घटना नहीं,
बल्कि, प्रजातंत्र के जीवन की
एक अभिशप्त प्रक्रिया है!
प्रक्रिया जिसने अब तक हमें बताया कि
आसमान के तारे,
युग-युग के नारे -
ये सब व्यर्थ हो गये,
कहीं जूठे हो गये,
या फिर झूठे हो गये !
एक प्रक्रिया जिसमें
लोगों की मौतें
राजनीति की गोटियाँ हो गयीं!
एक प्रक्रिया जिसमें
मौतें तो जीवन ले गयीं;
पर, उसके बाद की व्यग्र बहसों,
असंतुलित विवरणों. विकृत आकलनों,
घटाटोप विश्लेषणों की छाप और माप
जीवन के मूल्यों, उनके उद्देश्यों को ही
गहरे रूप से स्याह कर गयीं!
यों, मोरबी का पुल
केवल एक स्थिति,परिस्थिति नहीं,
व्यवस्था के व्याधों का विन्यास हो गया,
उनकी व्याख्या हो गया;
पुल की टूट
एक मानसिकता, एक प्रवृत्ति की
अरोक कहानी हो गयी;
और,
प्रजातंत्र के रेशे-रेशे में समा गयी!
⁃ सतीश
5th Nov, 2022
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