स्वप्न की बचपना

हर बचपना एक स्वप्न है,

हर स्वप्न एक बचपना है। 


स्वप्न कभी धूल-धूसरित नहीं होते

जब वे कलेजे में बसे होते हैं,

आँखों में तैरते होते हैं,

उठी हुई सबल बाँहों पर टिक कर 

आसमान को ढूँढते होते हैं


वे अपनी धरा खोज ही लेते हैं,

एक सुंदर वितान तान ही देते हैं। 


हर बचपना एक स्वप्न है,

हर स्वप्न एक बचपना है। 


सतीश

 (मार्च 11, 2023) 

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