जय श्रीराम !
“जय श्रीराम !”
चारों ओर
राम, राम की धुन है,
राम, राम है मति!
राम, राम ही गुण है,
राम, राम है गति!
चाहे पूरब हो, चाहे पश्चिम,
चाहे उत्तर हो, चाहे दक्षिण,
राम हैं देश के कण-कण में बसे,
राम हैं देश के मन-मन में लसे!
राम सभ्यता की पूर्ण मर्यादा
और संस्कृति की सकल चेतना!
राम हैं सशरीर परम अनुभूति,
और हैं वे सम्पूर्ण संज्ञा !
हर आरती में, हर अर्घ्य में,
हर आस में, हर साँस में,
हर पूजा में, हर अर्पण में
हे देव, बसी है तेरी प्राण-प्रतिष्ठा,
रमा है तेरा अविरल अभिनंदन!
अयोध्या उल्लसित है चरम ज्योति से,
पूरा राष्ट्र है अपूर्व आनंद में निमग्न!
तेरे चरणों पर अर्पित हैं
सब जय और पराजय,
सब ज्ञान और सब भक्ति,
हर कर्म-धर्म, शुद्ध-अशुद्ध युक्ति!
तेरे आशीष हेतु व्यग्र हैं
जीवन के सारे संशय,
बड़े या छोटे आशय!
युग-युगों से प्रवाहित,
युग-युगों से संचित,
युग-युगों से संकलित नमन
हे देव, तुमको सदैव अर्पित है
अनाहत, अनवरत, विनम्र, समन!
-सतीश
21 जनवरी, 2024
श्रीराम-मंदिर में प्रभु की प्राण-प्रतिष्ठा के पूर्व
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