वक्ष

वक्ष


वह ह्रदय-पुट, वह मर्म-गुच्छ, वह क्षीर-भव!

वह कल्प-संचय, वह कल्पना-गेह,

वह भव्य पट, वह दिव्य अक्ष, 

वह सुरभि-तल, वह सौंदर्य-पटल ! 


वह मनबद्ध, मानबद्ध, वह भावबद्ध, वह शीलबद्ध सा लगता है, 

वह कुछ मदमाता, कुछ इठलाता, कुछ इतराता सा लगता है,

वह शक्ति-पुंज की गहन गूँजों से भरा-भरा सा लगता है! 


उसकी गठन में सुंदर तन का चंदन-गायन बसता है,

मद-मोद, मदन-मादन, उत्तेजन-आवेशन बसता है;

उसकी लय में मन-सावन का गर्जन-तर्जन बसता है,

उसकी लय में छहर-फहर का मोहन-नर्तन रहता है,

उसकी लय में ख़ुश मेघों का घर्षण-आलोड़न रहता है,

उसकी लय में मधुर कसक का कर्षण-वर्षण बसता है,

उसकी लय में चंचल बूँदों का भीगा तन-मन बसता है,

उसकी लय में शोख़ बिजली की छमक-दमक कड़कती है,

उसकी लय में जीवन-विभव की उष्मा-सुषमा ठहरती है,

उसकी लय में सुघड़ दामन की लहक-दहक दमकती है! 


सतीश 

2 जनवरी, 2019/ अप्रैल 2024/ 28 जून 2024







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