बड़े कर्तव्य

बड़े कर्तव्य

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बाट-बटखरा, नफ़ा-मुनाफ़ा, तौल-तराज़ू,

ये सब अधिकांशतः जीवन की नाचीज़े हैं, 

ये ऐसी और इतनी ज़्यादा न हो जायें कि

वे भारी हो जायें और ज़िन्दगी हल्की हो जाये! 


नोंक-झोंक, नाखुशी-नाराज़गी, चीड़-फाड़,

ये सब छोटे संदर्भों की भावनाएँ हैं।

ये ऐसी और इतनी तीखी-तर्रार न हो जायें कि

वे बलवान हो जायें और जीवन लहूलुहान हो जाये! 


सीढ़ी-सोपान, पग-पायदान, मान-अरमान,

ये सब जीवन में राहों की चीज़ें हैं।

ये ऐसी और इतनी घनी न हो जायें कि

वे काफ़ी हो जायें और जीवन नाकाफ़ी हो जाये। 


मील-मंज़िल, पहल-पड़ाव, मान-सम्मान,

ये सब जीवन में बीच की चीजें हैं। 

ये ऐसी और इतनी महती न हो जायें कि 

वे बड़ी हो जायें और ज़िन्दगी छोटी हो जाये! 


नाखुशी-नाराज़गी में, असहमति में,

मानता हूँ, युद्ध, मन-युद्ध को,

तुम मुनासिब मानते हो। 

पर, हर थके युद्ध की परिणति 

किसी संधि को खोजती है।

तो, क्यूँ नहीं शुरू से ही 

थोड़ा खुलापन रहने दो,

थोड़ी सुबह, थोड़ी धूप, थोड़ी हवा, थोड़ी चाँदनी,

मन के कलेजे में, धीरे-धीरे ही सही 

उतरते रहने दो। 


अपने आप को बड़े कर्त्तव्यों की फुनगी पर डाल दो,

उसे ऊँचे उद्देश्यों की दमदार छाल पहना दो। 

जीर्ण भाव, विदीर्ण विचार, मौसमी मिज़ाज

अपने आप झर जायेंगे;

खड़ा रहेगा सार्थक-सकर्मक-उच्च वृक्ष,

विस्तार के तार-पात 

व्यक्तित्व में गहरे जड़ जायेंगे। 


सतीश

March 19, 2017


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