सागर की लहरों में

सागर की लहरों में


सागर की लहरों में मैंने 

तुमको आते-जाते देखा,

कभी हँसते, हिलोरें लेते, 

कभी मन में सिमटते देखा ! 


कभी भव्य  उत्थान-पटल बनते, 

कभी सुंदर भावों में फिसलते देखा; 

कभी उफनते, कभी उमड़ते, 

कभी बूँद-बूँद बन फहरते देखा;


    सागर की लहरों में मैंने 

    तुमको आते-जाते देखा! 


कभी खीझ से फेन बनते, 

कभी चुप, कभी गूँजते देखा; 

कभी सौंदर्य-उष्मा से सिहरते,

कभी शील-प्राण से सकुचाते देखा; 

कभी धूल-संग धूसरित होते,

कभी सह्रदय उजलते देखा;

कभी जीवन-रेतों को भिगोते,

कभी चट्टानों से टकराते देखा;

कभी सृष्टि की अनंत सत्ता में

तेरी प्रज्ञा को समाधिस्थ देखा! 

 

       सागर की लहरों में मैंने 

       तुमको आते-जाते देखा! 


सतीश 

सितम्बर 19/20, 2025 


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