संदेश

सूर्य

सूर्य हे   सूर्य   देव ! आकाश   में   रहकर   भी   धरती   के   कोने - कोने   तक   पहुँचने   की   तुम्हारी   इच्छा - शक्ति   नमस्य   है !  आकाश   में   एक   लघु   आकार   में   आकर   भी तुम   पूरे   संसार   में   छा   जाते   हो !  इसलिए ,  तुम   आराध्य   हो !  धरा   पर   रहकर   भी   हम   उसकी   ओर   मुड़   नहीं   पाते , ग्रीवा   को   झुका   नहीं   पाते , कुंठा   की   पैनी   जकड़   को   ढीली   कर   नहीं   पाते , “ अहम् ”  से  “ हम ”  की   ओर   बढ़   नहीं   पाते , सात्विक   रूप   से   जल   नहीं   पाते ,  उजल   नहीं   पाते !  सतीश   Nov 21/28 2023 ( छठ   पूजा   के   उपरांत )

भ्रष्टाचार की डिग्री!

भ्रष्टाचार की डिग्री! सोचता हूँ, सोचता रहता हूँ कि भ्रष्टाचार की “डिग्री” क्या होगी?  उसकी रूप-छवि कैसी होगी?  उसकी आकृति, उसकी कृति क्या होगी?  वह उच्चतम संस्थानों में पढ़ी-लिखी होगी?  पूरी “शिक्षा-दीक्षा” के साथ तकनीकों से लैस होगी?  वह कभी स्वघोषित “लोकपाल”,  कभी स्वयं भ्रष्टाचार हो जाती होगी?  वह कभी पत्र-पत्रिकाओं में  बड़े-बड़े दावों के साथ छपती होगी?  कभी उन्हें ख़रीदती होगी, कभी स्वयं बिकती होगी? वह चारा के “क्रांतिकारी” नायकों के साथ  “सुशासन” और “विकास” की परियों की  “सम्पूर्ण क्रांति” की परिकथाओं में मग्न हो आमोदपू्र्ण  गलबाँहियाँ  करती होगी?  क्या  वह प्रजातंत्र के पुनीततम परिसर में आतंको के नृशंस अनाचारों के पक्ष में अश्लील रूप से ठहाके लगाती होगी? वह सेना से उसकी कारवाइयों के लिए प्रमाण-पत्र माँगती होगी ? सोचता हूँ, सोचता रहता हूँ कि भ्रष्टाचार की “डिग्री” क्या होगी?  उसकी रूप-छवि कैसी होगी?  उसकी आकृति, उसकी कृति क्या होगी?  ⁃ सतीश  April 29, 2023. 

भगत सिंह जी

भगत सिंह जी  तेरे बलिदान की भाषा में देश, जीवन और कला को  समर्पण के नव गीत-संगीत, नये संजीवन शृंगार मिले!  राष्ट्र-यज्ञ में तेरी ज्वलंत आहुति से  भारत माँ को नया अभिसार मिला, उसके चरणों को नई छाप, नई पहचान मिली, उसके मन का उद्वेलन पाप नहीं, पुण्य हो गया;  भावनाओं से तप्त होना तब अपराध नहीं रहा, वह युग-युगों के पार जाता पुनीत बोध बन गया; देश के मन-मिज़ाज को तेरे रक्त से आसक्त भंगिमा मिली, स्वतंत्रता के क्षितिज पर राष्ट्र-ह्रदय की धड़कनों को, जीवन के मर्म-कर्म की परत-परत को,  नई हूक, नया स्वत्व, नया रागत्व मिला!  -सतीश  मार्च 23, 2024.  (शहीद-दिवस के अवसर पर)

एक जीवन-खंड, एक जीवन !

 एक जीवन-खंड, एक जीवन ! उन आँखों के घुमाव की अल्हड़ फुर्ती, ओठों पर मुस्कुराहट की छोटी सी आहट, फिर, एक खुली, खिली, चौड़ी हँसी!  सुंदर भौंहों की प्रसन्न उठान, चहकते हुए उनका वक्र होना,  सुमधुर भावनाओं के भार से आनंद-सिक्त होकर  थोड़ा नीचे आ जाना, स्मृतियों के आर-पार जाती  प्राणवती पुतलियों की सतेज धार; काजल के सजल भावों की उज्ज्वल भंगिमा!  गालों की हड्डियों पर सौन्दर्य के टीले का अलमस्त चढ़ाव! तबियत से खुली, उद्विग्नता-रहित पीठ को थपथपाती, उत्साह-उमंग और विश्वास से भरती, रह-रह कर फहरती, छहरती केशमाला !  धरती के गुरुत्व से परे  मन के बीचोंबीच लयपूर्ण वलय बनाती, अपनी आकर्षण-परिधि गढ़ती, समय-शरीर को ह्रदय की उष्णता देती  संक्षिप्त क्षणों की एक विस्तृत अनुभूति ! - यह है एक जीवन-खंड, या कि एक सकल जीवन!  ⁃ सतीश  14 जनवरी, 2024

ओस

ओस  -  पूरब का क्षितिज  नये-नये स्वप्न से जागृत ! हर्ष-तरंगों से भरी भोर के लाल-लाल कपोल ! आसमान की नीली-नीली, स्वच्छ, पावन भावनाओं की टोह लेती फुदकते खगों की टोली!  इधर, फूलों—पत्तियों पर सहर्ष लेटी ओस की बूँदें!  मन बुदबुदाने लगा कि  ये ओस की बूँदें क्या हैं?  रात-भर नकारात्मक शक्तियों से जूझती  प्रकृति का कर्म-स्वेद?  सुबह को कर्मपरक रहने हेतु मिला आकाश का आशीष-जल?  भोर को भेंट में मिली  रात के ह्रदय की सुंदर भावनाओं की नमी?                 ओस की बूँदों का वलय,         है कर्म-चेतना का मनभावन संचय!  ओस-कण के केंद्र में है उसकी नियत की स्वच्छता! उसकी परिधि पर आसीन है, कर्म-तल्लीन कामनाओं की पारदर्शिता! ओस की तरलता फूलों में समाती, उन्हें शक्ति-प्रेरणा, सजलता देती ताकि दिन की तपतपाहट को झेल-झेल कर भी फूल अपनी सौंदर्य-सुरभि को बनाये रखें !  प्रकृति की कर्मठता के श्रम-विंदु, ये ओस की बूँदें!  -सतीश  28 Nov, 2020

मानचित्र

मानचित्र  - जीवन का मानचित्र कैसा हो?  सजा-धजा, सुघड़, सुडौल,  या कुछ अल्हड़, अनगढ़, कुछ बेडौल?  और मानचित्र की भंगिमा कैसी हो?  जो भूलों-भटकनों की गिनती नहीं करती, स्वप्नों के बनने-बिगड़ने के आँकड़े नहीं रखती, राहों के ऊबड़-खाबड़ होने की चिंता नहीं करती; जो कभी अन्यमनस्क होती, कुछ अनबुझ होती, कभी कुछ खोयी होती, कुछ अनदिख होती, या फिर कभी स्पष्ट प्राप्ति सी प्रत्यक्ष होती!  मानचित्र की भाव-दशा कैसी हो?  अनागत संभावनाओं की प्रथाओं, कथाओं से भरी, ठेसों, ठोकरों, चोटों, कचोटों से प्रेरित होती, प्रहारों, हारों से उमगती, उत्सुक, उत्फुल्ल होती!  मानचित्र की मर्म-भावना कैसी हो?  जीवन की अनपढ़ रेखाओं को उकेरती कला सी, बार-बार अपने को ढूँढती जिज्ञासा सी, अनवरत स्वयं से उलझती पहेली सी, असंतुलन से जन्म लेती अनमोल जीवन-निधि सी,  अपनी सीमाओं को कर्म-धर्म के अनहद नाद से भरती हर विस्तार को चुनौती देती चौहद्दी सी!  जीवन का मानचित्र कैसा हो?  मानचित्र की भंगिमा कैसी हो?  उसकी भाव-दशा, मर्म-भावना कैसी हो?  -सतीश  मार्च 9, 2024.

रंगमंच

रंगमंच   - - नायक ,  महानायक ,  खलनायक   अपनी - अपनी   भूमिका   में   अति   व्यस्त   हैं ; किराये   के   खिलाड़ियों   से   भरी   सभा   है ,  लेखक ,  पत्रकार ,  साहित्यकार   आँखों   की   पुतली ,  तन्मय   कठपुतली   बनने   में   तुले   हैं ,  विशेषज्ञ ,  सर्वज्ञ   अपनी   अदाओं   में   मत्त ,  मस्त   हैं ; भिन्न - भिन्न   भंगिमाओं   के   बीच   तालियाँ ,  अठखेलियाँ   जारी   हैं ,  हँसती ,  खेलती ,  खिलखिलाती   चेतनाओं   के   हार्दिक   जमघट   में   न्याय ,  पत्र ,  पुरस्कार   आयोजित   हैं ,  प्रायोजित   हैं !  बेचारी   जनता   के   पास न   कोई   रंग ,  न   मंच   है , यही   उसका   जीवन , उसके   जीवन   का   अनोखा   रंगमंच   है !  सतीश   मार्च   २७ ,  २०२३