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जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इसे मैं क्या कहूँ?

कभी कुंचित, कभी अकुंचित, कभी मन-वेणी,  कभी मन-मुक्त इन कच-केशों को मैं क्या कहूँ? -     कचनार कहूँ या कोई कशिश कहूँ?  या इसे, महज़, एक उलझन कहूँ? या, जीवन-सौंदर्य का, सौंदर्य के संवेगों का  एक सुरभित, सवाक्, समग्र संचय कहूँ?  इसे मैं क्या कहूँ? कभी सीधे, कभी तिरछे, कभी कसे, कभी ढ़ीले  नयनों के घुमावों को मैं क्या कहूँ? - रोक-टोक कहूँ? या, एक सरल तरलता में  ऊभ-चुभ करती जीवन-नौका का सुंदर बहाव कहूँ?  इसे मैं क्या कहूँ?  कभी सिकुड़ती, कभी फैलती  उसकी भृकुटी को मैं क्या कहूँ? - रस्साकशी-मया कहूँ? या सृष्टि-भाल को सँभाले  किसी क्षितिज की सुंदर ज्या कहूँ?  हल्की, पतली, नुकीली पुतलियों को  मैं क्या कहूँ?  मनधार कहूँ ?  या जीवन-सौंदर्य के आर-पार का  वरण करता हुआ आवरण कहूँ? इसे मैं क्या कहूँ?  अर्धवृत्तों-से उसके ओठों को मैं क्या कहूँ? आसमान के चेहरे पर  अर्धचाँद का आलोकित अंकन कहूँ? या, अपनी सुंदरता की अनुभूति से झुकी हुई  मेपल की हल्की, नुकीली, पतली, लाल-लाल पत्तियाँ कहूँ?  उसके अधर-पट पर ल...

नारी तुम

नारी ,  तुम !  तुम   हो   अमिट ,  अडोल   धुरी , जीवन - योग   की   कथा   मनोहर , युग - युगों   की   अमूल्य   थाती , माँ ,  बेटी ,  पत्नी ,  बहन ,  सखा ,  सहचर !  तुम   हो   जीवन   की   पहली   शिक्षिका ,  स्वयं   सृजन ,  सृजन - कर्म   की   प्रथम   शिक्षा !  तुम   हो   सृष्टि   की   संजीवनी   प्रेरणा ,  व्यवस्थाओं ,  संस्थाओं   की   दृढ़ ,  मानक   नींव ,  स्वप्नों ,  कल्पनाओं ,  संभावनाओं   की   अपरिमेय   देह , परम्परा   और   आधुनिकता   की   संयुक्त   दिव्य   दृष्टि , जीवन - कर्मों   की   वृहत् ,  गूढ़ ,  सुंदर   आयाम - छवि !  तुम   हो   प्रकृति ,  सचेतन   शक्ति !  काल ,  समय   की   छुअन   से   परे चेतन   संवेगों   से   सतत्   गतिम...

अनगढ़

जिन्हें अनगढ़ पहाड़ों पर चढ़ने-उतरने की लत है, उन्हें सीढ़ियों-पायदानों का मोह छोड़ देना चाहिए; जिन्हें  आफत-आँधियों पर उड़ने-उतराने की आदत हो, उन्हें हल्के बयारों की टोह छोड़ देनी चाहिए!  जिन्हें तंग सुरंगों में और तुंग शिखरों पर रहने की आदत है, उन्हें समतलों, सीधी राहों, सुराहों को छोड़ देना चाहिए; जिन्हें खुरदरे वृक्षों की छाल पहनने की आदत हो, उन्हें फिसलती लतिकाओं से लिपटना छोड़ देना चाहिए! जिन्हें ऊँचे-तने वटों की शाखाओं पर विराजने की आदत हो, उन्हें लघु तरूओं का आश्रय छोड़ देना चाहिए; जिन्हें बड़े मिज़ाजों में बसी फ़क़ीरी की आदत है, उन्हें कलुष-क्लेश की कंदराओं में भटकना छोड़ देना चाहिए!  जिन्हें हिम-धवल श्रृंगों के छोर पर रहने की आदत है, उन्हें बौने मुकुटों का प्रेम छोड़ देना चाहिए; जिन्हें मदमाते मेघों पर मचलने-विहरने की आदत है, उन्हें मान्य-सामान्य सतहों पर सरकना छोड़ देना चाहिए! जिन्हें अनजानी वादियों में लहलहाने की आदत है, उन्हें सजे-सजाये गमलों में सिमटना छोड़ देना चाहिए; जिन्हें अनमने वन में भूलने-भटकने की आदत है, उन्हें बने-बनाये सजीले पथों पर टहलना छोड़ देना...

लाल बहादुर शास्त्री जी

छोटे - से   क़द   की   बड़ी   ऊँचाई ! लघु   आँखों   के   वृहत्   स्वप्न ! सरल   बातों   में   दृढ़ ,  कल्पमय   संकल्प  ! सीधे - साधे   वेश   में   स्वयं   एक   देश ! हे   लाल !  हे   बहादुर !  हे   पुनीत   वीर - शास्त्री ! आपको   हमारा   शत - सहस्र   विनित   नमन !  # लाल _ बहादुर _ शास्त्री   जी की पुण्यतिथि पर एक नमन।  (Jan 11) 

बीज

बीज स्वयं को सिमटाये रखता है ताकि धरती में गहरे धँस सके; मिट्टी को ओढ़े अपने को छिपाये रखता है इस   हेतु  कि उसके अन्तस्तल की संभावनाओं का  सम्पूर्ण शरीर साकार हो, विहँस सके; स्वयं को वह कठोर, रूखा बनाये रखता  इसलिए कि पौध, वृक्ष अबाधित बनते रहे, बढ़ते रहे, शाखाएँ दृढ़ हो फैल जायें, फुनगियाँ मन से उमग, पसर पायें, पत्तियाँ, फूल, फल तन्मय विकस सकें!  -सतीश Jan 13, 2023. 

नीड़ हमारा

नीड़ हमारा !  धरती से दूर तिनकों से बना हवा में टँगा है नीड़ हमारा -  आशाओं, संभावनाओं से टँका, गहरे मन से बुना, सच्चे स्वप्न से सना, सुंदर सोच से भरा, आनंद-भाव से आच्छादित,  गगन-बोध में निमग्न !  स्वयं आधार खोजता,  पर, जीवन को आधार देता  नीड़ हमारा!  ⁃ सतीश  Jan 7, 2023

पनघट

मर्यादा - भित्तियों   से   घिरे   पनघट - पनघट   में   रमे   रहते सहज ,  सुंदर ,  स्वच्छ , धीर - अधीर   जीवन - नीर  !  ये   नीर   बच्चों   से   भोले   होते  - जैसे   ही   उत्सुक   घट   आते   वे   सहर्ष   उनके   हो   लेते , सस्नेह   स्वयं   को   सौंप   देते ; बिना   किसी   रोका - टोकी ,  आना - कानी , बिना   किसी   ग्रंथि ,  बिना   किसी   उद्वेलन   के घर - घर   तक   समोद   पहुँच   जाते !  सतीश   Jan 5, 2023. 

Our Intellectuals

If you are not disoriented, You are not intellectual! If you don’t do distortions  Of argument,intention,fact You are not intellectual!  If you are not sold out, You are not intellectual!  If you are not Anti-India  You are not “Intellectual”!

शाम

रक्त   की   ऊर्जा   से   दीप्त   सूरज , खिलखिलाती   मन - मुक्त   शाम , बाँहें   खोले   ऊँचे   प्रसन्न   पेड़ , स्याह   बादलों   में   ललित   लालिमा   भरती   प्रकृति , आकाश   की   नील - नील   उत्सुकता   धरती   को   निहारने   के   निमित्त   आकुल !  सब   एक - दूसरे   के   मन   में   डूबे   हुए , साथ - साथ , समवेत , समाहित !  विभिन्न   वर्णों   के   स्वरूप ,  विविध   अस्तित्व - रूप , जीवन   के   भावपूर्ण ,  सुंदर   समास , अस्तित्वों   की   सार्थक   संधि  !        - सतीश   Dec 30, 2022